हमने एक चीज़ देखी है मेरे हमराहे जाँ
कि वक़्त हो तो होती है इनायत हमपर
टूट के दुनियां से चले आते हो जब
फिर बरसती है बेलौस मोहब्बत हम पर।
हाँ मसरूफ़ बहोत हो शायद आज
कि याद आये तो याद का इज़हार ना हो
मुन्तज़िर होना पड़ जाए अगर तुमको तो
फूट पड़ती है किस क़दर शिकायत हमपर।
शाम होगी फिर, फिर साथ होगे मेरे तुम
सर्द वादियों में मेरे शानों पे सर होगा
फिर उल्फ़त का तराना छेड़ बैठोगे कोई
फिर बरस जाएगा तेरा अब्र-ए-चाहत हमपर।
हाँ मेरी जाँ बस यूँ ही गुज़र जाएगी
ज़िन्दगी भी क्या भला रुकती है कभी
फिर ये आलम रुख़्सत होगा इस आलम से
फिर होगा कोई लम्हा-ए-राहत हमपर।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem