हम पर Poem by Ahatisham Alam

हम पर

हमने एक चीज़ देखी है मेरे हमराहे जाँ
कि वक़्त हो तो होती है इनायत हमपर
टूट के दुनियां से चले आते हो जब
फिर बरसती है बेलौस मोहब्बत हम पर।

हाँ मसरूफ़ बहोत हो शायद आज
कि याद आये तो याद का इज़हार ना हो
मुन्तज़िर होना पड़ जाए अगर तुमको तो
फूट पड़ती है किस क़दर शिकायत हमपर।

शाम होगी फिर, फिर साथ होगे मेरे तुम
सर्द वादियों में मेरे शानों पे सर होगा
फिर उल्फ़त का तराना छेड़ बैठोगे कोई
फिर बरस जाएगा तेरा अब्र-ए-चाहत हमपर।

हाँ मेरी जाँ बस यूँ ही गुज़र जाएगी
ज़िन्दगी भी क्या भला रुकती है कभी
फिर ये आलम रुख़्सत होगा इस आलम से
फिर होगा कोई लम्हा-ए-राहत हमपर।

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