चमकते चाँद को हम आईना ऐसे दिखाते हैं Poem by Lalit Kaira

चमकते चाँद को हम आईना ऐसे दिखाते हैं

चमकते चाँद को हम आईना ऐसे दिखाते हैं
उधर वो मुस्कुराता है, इधर हम मुस्कुराते हैं

दरद उसका समझते हैं, उधारी के उजालों पर
तभी खामोश रहते है, औ' अपना दिल जलाते हैं

किताबें रूठ जाती हैं कभी हमसे मचल कर के
समझदारी किनारे रख, किसी से दिल लगाते हैं

बता कर बेवफा मुझको, कत्ल करते हैं हँस-हँस के
कहो गर छोड़ दो अब तो, वो मुझ पर हक जताते हैं

चलो अब लौट चलते हैं, हसीं सपनों की दुनिया से
छतों पर कुछ परिंदों को "ललित" दाना खिलाते हैं

Wednesday, August 22, 2018
Topic(s) of this poem: love and life
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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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