उसी की चाह बांकी है Poem by Lalit Kaira

उसी की चाह बांकी है

बता क्या चाह बांकी है
तनिक सा माह बांकी है

कड़ी है धूप जीवन की
अहा! कुछ छाह बांकी है

वहां भी काम अपना क्या
वहां बस आह बांकी है

बड़ा जोगी बना फिरता
बता क्या राह बांकी है

लुटेरे फिर जमा होंगे
कई गुमराह बांकी है

जिसे पाना नहीं बस में
उसी की चाह बांकी है

भजन होगा ललित कैसे
अभी कुछ डाह बाकी है

Wednesday, August 22, 2018
Topic(s) of this poem: new year
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Written in the last month of some year......
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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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