क्या मेरा कसूर था Poem by Sharad Bhatia

क्या मेरा कसूर था

Rating: 5.0

क्या मेरा कसूर था,
कि उससे मोहब्बत कर बैठा ।।
मर तो मैं पहले ही गया था,
शायद एक बार फिर उसकी खातिर अपने आप को जिंदा कर बैठा।।


पता नहीं क्यूँ बेवजह उससे टकरा बैठा,
और उसकी शरारती आँखों मे देख बैठा ।।
शायद कसूर उसकी शरारती आँखों का था,
जो बेवजह मेरी आँखों से उलझ बैठी,
और मुझे अपनी मोहब्बत का दावत दे बैठी।।

अब चाहा कर भीमैं कुछ नहीं कर पा रहा था,
बस उसके आगोश मे सिमटना चाहता था,
और उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहता था।।
पर वोबेवफा भी बेवफाई दिखा गई,
मुझे छोड़ किसी और का दामन थाम गई।।

अब मैं फिर से मर गया,
शायद जिंदा होने के लिए फिर से तरस गया ।।

क्या मेरा कसूर था.....

एक प्यारा सा एहसास मेरी नन्ही कलम से -
(शरद भाटिया)

क्या मेरा कसूर था
Saturday, August 8, 2020
Topic(s) of this poem: feeling,sad,sad love,sadness
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 08 August 2020

Aachi panktiyan hai. Yeah ehsaas he khas hai zindagi ke jaroorat hai. Kassor bas itna tha ke aapne sirf chacha aur wo intizaar karte karte darwaze par aakh tikaye dam tood diya ho.

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