ख्वाहिश और हम Poem by Sharad Bhatia

ख्वाहिश और हम

Rating: 4.0

उम्र... बिना रुके सफर कर रही है,
और हम...ख़्वाहिशें लेकर वहीं खड़े हैं.! !
ख़्वाहिशें यूँही बढ़ती जा रही है,
और उम्र यूँही घटती जा रही है।
लेकिन हम वही के वही खड़े हैं

Tuesday, August 4, 2020
Topic(s) of this poem: dreams,time
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 05 August 2020

ख्वाहिशें और ख्व़ाब दोनों जरुरी हैं ज़िन्दगी मैं. उनमे और वास्तविकता में पुल बनाना जरुरी है. इमानदार कोशिश और मेहनत उन्हें पाने या पूरा करने के लिए होना जरुरी है. यह रचना हमें सोचने को मजबूर करती है व प्रेरित करती है. धन्यवाद.

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Varsha M 04 August 2020

Hahaha bahut khoob. Khwaishon ko pankh laga lijiye raftar pakadne me madad miljayegi. Good Tanka.

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