मशवरा ए तस्कीन Poem by Tarun Badghaiya

मशवरा ए तस्कीन

तोहमत की आड़ में ज़हनसीब,
अटखेलियां कम ही रखना इकरार में,
भाँप के गुरूर में कोहरे से ना टकराना,
लुप्त हो जाओगे सर्द बाज़ार में।

क्या गुज़ारिश का फितूर सर पर है,
मुराद को मसला बना रहे हो बेकार में,
क्यूं सबको परोसते हो अपनी जिंदगी,
खबरें क्या कम हैं, आने को अखबार में।

कदर रखना अपनी रूहानी जिंदगी की,
जब जोख़िम लेते हो उधार में,
कड़वी सच्चाई है समझ लो जल्दी, i। ये
बेच ना देना ईमान कारोबार में।

तो,

आसमानी, फ़िज़ूली बातों को छोड़कर
खुदको मिला धुल और चट्टान में, ,
एक फन्दा तो बना अपने ख्वबो और इमानों का,
और कुद जा विश्वास से मझदार में।।

लाख परेशानिया, जद्दोजहद है जिंदगी में तेरी,
तू न भटका कर किसी और के गलियार में, ,
इतवार- बुधवार बस न चलेगी बाते तुम्हारी,
रोज़ आना पड़ेगा तुझको खुद के ही द्वार में।।

अरे बस खुद से तो इत्तलाह करना है,
क्यों फंसा पड़ा है संसार मे,
तू अल्लाह, तू भगवान, तू ही ईश है,
फिर क्यों भटक रहा है कई और दरबार मे।।

📖तरुण -तरुण✍️
Tarun & Tarun

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Joint effort by me and tarun arora ❤️ just tried to present how once life should go
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