आइस्क्रीम दिला दो माँ 
आज दूध वाली लाया है ।
देखो ना लार टपक रही है 
ठंडी-ठंडी मीठी मीठी है 
कितनी स्वाद होती है 
तुम तो जानती हो माँ ।
जल्दी से एक रुपया दो 
कहीं वो चला ना जाए ।
सब बच्चे कह रहे थे 
एक रूपये में असली 
आइसक्रीम देता है ये। 
नारियल भी डालता है 
काजू भी डालता है ।
सब खाते हैं मेरा मन भी करता है 
कोई मुझे क्यूँ नहीं देता माँ ।
मैं सबको मेरे खिलौने देता हुँ 
सबसे हँसकर कहता हुँ 
आओ खेलें हमारे घर पर ।
तुम चुप क्यूँ हो माँ 
कुछ तो बोलो 
मैं और किससे कहुँ 
मेरा तो सबकुछ तुम ही हो माँ ।
मुझसे बात करो प्यारी माँ 
एक बात बताऊँ तुम्हें 
मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था 
मुझे आइसक्रीम अच्छी नहीं लगती ।
राज स्वामी                
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Absolutely, the poem shows the sensibility of a child who wants to have ice-cream and expresses his desire in so may ways. But then, stung by reality, he feigns as if he dislikes ice-cream before his mother. Thanks, Dear poet, for sharing this beautiful poem.
Thank you sir Have nice day