एक पाप के आतंक का अंत Poem by Sharad Bhatia

एक पाप के आतंक का अंत

Rating: 5.0

एक पाप के आतंक का अंत

एक आतंक का साया था,
जिसने हर जगह शोर मचाया था।।

रह - रह कर हर किसी को सताता था,
अपनी गुंडागर्दी जो दिखाता था।।

ना जाने कितनों को मारा, कितनों का घर उजाड़ा,
अब वो भी अपने आप को "हिरण्यकश्यप" समझने लगा,
रह - रह अपने आप को "बाहुबली" बोलने लगा।

दिखता सीधा सा, पर दिमाग का बड़ा तेज़,
सिस्टम के साथ खेलना उसके बाएं हाथ का खेल।।
अब वो भी सिस्टम के साथ खिलवाड़ करने लगा,
शायद वो अपने आप को बादशाह,
और सिस्टम को अपना गुलाम समझने की भूल करने लगा ।।

अब पानी सिर से ऊपर होता जा रहा था,
सिस्टम वालों की नजरो मे जो चढ़ता जा रहा था।।
शायद उसका विनाश काल अब शुरू होने जा रहा था ।।
इसलिये अब वो भी डर के मारे छुपा जा रहा था,
कभी इधर, कभी उधर भागा जा रहा था।।
कभी मंदिर, कभी मस्जिद माथा टेक रहा था,
रह - रह कर अपने बचने की गुहार जो कर रहा था।।

पर शायद अब उसके पाप का घड़ा भर चुका था,
क्युकि वो सिस्टम के हत्थे चढ़ चुका था।।
और उनके हाथों बुरी तरह मारा जा चुका था,
उसकी लाश को देख कर हर कोई ताली बजा रहा था।।
शायद उसके मरने की हर कोई दुआ मांग रहा था,
और हुई दुआ कबूल ।।
हो गया एक पाप के आतंक का अंत...! ! !

अब हर जगह मिठाई बांटी जा रही थी,
उसके मरने की दिवाली जो मनाई जा रही थी।।

एक कहावत -
"जैसी करनी- वैसी भरनी"
(शरद भाटिया)

Saturday, July 11, 2020
Topic(s) of this poem: karma,sin
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 17 July 2020

Vinash a aant sab duwa karte. Tras se rahat har koi cahata hai. Jhoot pe sach ki vijay hamesha hoti hai. Jaisi karni waisi bharni ye hota he hai. Ati uttam lekhan.

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Rajnish Manga 12 July 2020

समाज की हर अच्छी बुरी बात का लोग संज्ञान लेते हैं और घटनाओं का विश्लेषण करते हैं. एक दुर्दान अपराधी की पुलिस एनकाउंटर में मौत का आम लोगों ने स्वागत किया है. यह अत्यंत प्रभावशाली कविता है. धन्यवाद.

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