"प्राकृतिक आपदा और हम"
देखों कैसी प्राकृतिक आपदा आई हैं,
हर जगह खामोशी सी छाई हैं।।
एक वक़्त वो हुआ करता था,
जब खूब शोर हुआ करता था।।
आज बड़ी खामोशी हैं,
शायद आने वाले वक़्त की कोई बदमाशी सी हैं।।
चारो और सन्नाटा है,
हर कोई छिपकर बैठा है ।।
हैं, मन मे कई सवाल,
पर पूछने से घबराहा रहा है।।
ईश्वर से लगातार प्रार्थना कर रहा है,
शायद अपने आप को बचाने की गुहार कर रहा है।।
देखों आज मानवता कैसी जागी,
दान-धर्म, हर कोई करना चाहता,
शायद अपने पापों को यूँ धोना चाहता।।
रह रह कर अपनों को याद कर रहा हैं,
शायद अपनों से मिलने की अरदास कर रहा है।।
अरे देखों, यह कैसी विपदा आई,
जिसने हर किसी के मुख पर तालाबंदी जो लगाई ।।
हर कोई एक दूसरे की खैर खबर पूछ रहा है,
उन्हें "घर" पर सुरक्षित रहने की सलाह दे रहा है।।
देखों आज "सड़के" कितनी खामोश हैं,
कभी यह भी तंग होती थी।।
तुम्हारे शोर से यह भी गरम सी होती थी,
आज सुकूं से सो रही।।
अब हम उकता से जाते,
यूँही खामोश सड़कों को देख-देख कर बोर से हो जाते।।
अब हम भी पिंजरे मे क़ैद पंछी की तरह फङफाड़ने लगे,
शायद उड़ने के लिए अब मचलने लगे ।।
कहाँ जाना है, क्या करना है पता नहीं,
बस निकलना चाहते हैं, इस क़ैद के पिंजरे से।।
शायद सोई सड़कों को उठाना चाहते,
उसके साथ भी कुछ पल बिताना चाहते।।
एक प्यारा सा एहसास -(शरद भाटिया)
कोरोना वायरस जनित महामारी ने सारे विश्व को बुरी तरह हिला कर रख दिया है. आम जनजीवन पर पड़े इसके प्रभाव को आपने अच्छा देखा परखा है व उसका वर्णन किया है. धन्यवाद शरद जी.
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बहुत बढ़िया संदेश वर्तमान स्तिथि के लिए।