नफरत की दीवार Poem by Sukhbir Singh Alagh

नफरत की दीवार

ज़रा नफरत की ये दीवार,
हटा कर तो देखो,
सारी दुनियाँ में तुम्हें,
ख़ुदा नजर आएगा ! !

अपनी जाति का अभिमान,
भुला कर तो देखो,
सारी कायनात से तुम्हें,
प्यार हो जाएगा! !

ज़रा धर्म के कुछ,
तुम अर्थ तो सीखो,
इंसान बनकर कैसे जीना,
तभी समझ आएगा! !

कोई भी धर्म हमे,
नफरत नहीं सिखाता
"सुखबीर" तू ये बात
कब समझ पाएगा! !

Saturday, April 28, 2018
Topic(s) of this poem: love and life
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