कितनी व्यस्त हैं यह जिंदगी,
कि किस कदर हम एक दूसरे को नज़र अंदाज कर जाते।।
एक बंद कमरे मे होकर भी,
एक दूसरे का हाल चाल भी नहीं जान पाते ।।
शायद हम अपने आप में इतने मसरूफ हैं
तभी तो मुँह फेर कर सो जाते ।।
अब तो बस टीवी, मोबाईल, लैपटॉप को अपनी जिंदगी बना बैठे,
और अपनी जिंदगी से "अपनों को" दूर कर बैठे।।
कहाँ गया वो "अपनापन" जो हमारे माँ बाप हमे सिखाया करते,
हँसी ठिठोली के साथ एक साथ भोजन कराया करते।।
कहाँ गया वो गिली डंडा, वो कॅचे
जो कभी साथ साथ खेला करते थे
और "अपनों को", "अपने से",
जोड़े रखने का प्रयास किया करते थे।।
अब तो टीवी, मोबाईल, लैपटॉप ने ऐसा जादू किया है,
कि बच्चा पहले माँ को माताजी,
और बाप को पिताजी कहता था,
अब माॅम, डैड़ कहने लगा है।।
कहाँ गई वो प्यारी जिंदगी,
जब सब रात मे एक साथ छत पर सोया करते,
रात भर चांद और तारे से बातें किया करते।।
जब पिताजी की आवाज आती कि सब चुपचाप सो जाओ,
तब हम धीरे - धीरे खिलखिलाया करते।।
अब तो हम अपने मे इतने मसरूफ हो गए हैं,
कि "अपनों को" ही भूल गए हैं।।
आधुनिकता का चश्मा पहने, देखों हम कितनी होड़ कर जाते,
"अपनों" को छोड़ "गैरों" से दोस्ती कर जाते।।
एक छोटा सा एहसास -कितनी व्यस्त हैं यह जिंदगी, पर अपनी नन्ही कलम से - शरद भाटिया
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Wo khalipan jo bhar na sake Chahe duniya ketni kyo na ho jaye Duniya hamse banti hai Naki bejaan cheezon se Mante hai aadhonikta ne Chura liya zindagi ke astitva ko Par aab bhi baaki hai wo Hassen yaade Jo saugaat ke roop me de jayenge Aapne baacho ko Jina sikha jayenge Chahe samay ho 2020 ya 2220 Ham to de jayenge sanskar Jo hai hamara aadhar. Dil cho janewali behtareen rachna. Aabhar. Bahut khoob.