मेरा गांव बदल रहा है Poem by Ambrish Kumar

मेरा गांव बदल रहा है

Rating: 5.0

मेरा गांव बदल रहा है, सोया हुआ रक्त उबल रहा है।
पहले मिलजुल कर रहते थे, अब एक दूसरे को निगल रहा है ।।
सुना था मकान कच्चे है पर रिश्ते पक्के होते थे गांव में ।
बच्चे बूढे, हारे थके श्रमिक किसान सब खुश थे छाव में ।।
आज छांव छितर गई है, रिश्तों की डोर बिखर गई है ।
गांव के लोग भी प्रपंची हो गए, बुद्धि कुछ ज्यादा निखर गयी है ।।
बड़ो के मन मे बच्चो के लिए मोह नही है, बच्चो में भी द्रोह कही है।
क्षमा, ममता, प्रेम दुलार सब लुप्त, अब मानवता नहीं है ।।
क्रोध, द्रोह, छल, धृणा, षड्यंत्र, कुटिलता अब हर मन में टहल रहा है ।
आज ही मुझे एहसास हुआ, की मेरा गांव अब बदल रहा है ।।

मेरा गांव बदल रहा है
Monday, June 22, 2020
Topic(s) of this poem: people,village
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 22 June 2020

काफी हद तक सही आकलन किया गया है स्थिति का. आज जब दुनिया भर की सोच में दुराव व बदलाव आया है, नगरों में भटकाव छाया है और आपसी रिश्तों में आत्मीयता के स्थान पर दिखावा अधिक नज़र आने लगा है तो ऐसे में हम यह कैसे मान लें कि हमारे गाँव इनके असर से बचे रहेंगे. इस विषय पर लिखना बहुत बड़ी बात है. धन्यवाद मित्र.

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Ambrish Kumar 22 June 2020

बहुत बहुत धन्यवाद आपके कहे शब्दो के लिए।

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