तमाम फ़ैसले जो वक़्त पर होते
मुमकिन है कि ये जज़्बात बे असर होते
ना ये रंगीनियाँ होतीं ना चश्मे तर होते
हम भी आज किसी मक़ाम पर होते
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मुहब्बत से शिकायत और ये अंदाज़े बयां खूब- 'कुछ हमारे भी नूरे नज़र होते'. खुबसूरत ख़याल.
हम भी किसी के चारागर होते कुछ हमारे भी नूरे नज़र होते........nice expression with nice theme. Beautiful poem. Thanks for sharing.