Monday, April 13, 2020

ग़ज़ल लिखने की कोशिश Comments

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आयी ऐसी शाम थी मैं मोम सा जल जल पिघल रहा था,
वो सजी थी दुल्हन सी, जी देखने को मचल रहा था।।
उसका रूप चाँद सा और यौवन चांदनी से बिखर रहा था,
वो चंचल _तरुण_काया सी, मेरे शब्र का बाण टूट रहा था।
...
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Tarun Badghaiya
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