खुदमें तू खुद को ढाल ले Poem by Prabhakr Anil

खुदमें तू खुद को ढाल ले

है भीड़ बहुत, तू इसमे ना रुक
हर एक कदम अलगाते चल।
सब एक समान, दिखते यहां
निज कुछ अलग दिखलाते चल।

हर एक पग, रख ठोक कर,
डग मग न तेरा विश्वास हो।
हर एक लक्ष्य, तू भेदता चल,
शिखर तक चढ़ने की आस हो।

ये ऊंच नीच, ये भेद भाव,
सब राह की है रुकावटे।
क्या मूल धर्म, क्या जाति पात,
सब है विकट की आहटे।

तुझे बढ़ना है, कुछ करना है,
एक जिद्द तू मन मे पाल ले।
सब भूल जा, तू है कहा,
खुदमे तू खुद को ढाल ले।

~prabhakar Anil

खुदमें तू खुद को ढाल ले
Tuesday, December 26, 2017
Topic(s) of this poem: motivational
COMMENTS OF THE POEM
Abhipsa Panda 06 October 2018

What a thought.... Really appreciating....

1 0 Reply
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Prabhakr Anil

Prabhakr Anil

Kotwan, . Barhaj deoria up
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