है भीड़ बहुत, तू इसमे ना रुक
हर एक कदम अलगाते चल।
सब एक समान, दिखते यहां
निज कुछ अलग दिखलाते चल।
हर एक पग, रख ठोक कर,
डग मग न तेरा विश्वास हो।
हर एक लक्ष्य, तू भेदता चल,
शिखर तक चढ़ने की आस हो।
ये ऊंच नीच, ये भेद भाव,
सब राह की है रुकावटे।
क्या मूल धर्म, क्या जाति पात,
सब है विकट की आहटे।
तुझे बढ़ना है, कुछ करना है,
एक जिद्द तू मन मे पाल ले।
सब भूल जा, तू है कहा,
खुदमे तू खुद को ढाल ले।
~prabhakar Anil
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What a thought.... Really appreciating....