जीवन में मधुमास नहीं है
व्यग्र कोई उच्छ्वास नहीं है
वर्षा की भी आस नहीं है
सूखी है नदिया बरसों से
तुम रूठे हो जाने कब से
प्यासे हैं अधरों के प्याले
चुम्बनहीन कपोल बिचारे
मादिरारुण आँखों के धारे
तुम्हें पुकारें छलक छलक के
तुम रूठे हो जाने कब से
सावन बरस रहा है निशिदिन
गूंजी रातें, चहक उठे दिन
मैल धुल गया, निखर गए मन
दिल फिर भी ना बहले इनसे
तुम रूठे हो जाने कब से
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