सुबह की किरणों में लिपटी, शबनम में नहायी हुई
ठण्ड के मौसम में वो, थोड़ी सी गरमाई हुई
अंचल को धीरे से फैला कर उतरी थी वो
फिर न जाने कहाँ खो गयी इस भीड़ में।
...
Read full text
IF ONLY U CAN ENGLISIZE THIS I SHALL BE ABLE TO ENJOY IT HOPE TO FIND HER IN UR LOVELY VERSE O ASIM YOU ARE A POET A KAVI NANSEEN
रात के अंधेरों में भी देखा सहज मुस्काते हुए रेत पर देखा दूर तक चांदनी छानते हुए बर्फ की छोटी पर फिर वो जम गयी सख्ताते हुए फिर न जाने कहाँ खो गयी किसी सन्नाटों में।......बहुत सुंदर वर्णना हुआ है कारण के परे कार्य । Beautiful expression from top to bottom. Well executed. Thanks for sharing. Five stars.
प्रकृति की मनोहारी विविधता के ऐसे अद्वितीय दर्शन साहित्य की गलियों में आजकल कम ही प्राप्त होते हैं. यह पाठकों को आनंद देने वाला है और किसी हद तक सोचने को बाध्य भी करता है. पूरी कविता एक रहस्यमयता के सूत्र में गुंथी हुयी नज़र आती है. बहुत बहुत धन्यवाद, असीम जी.
क़ुदरत को बहुत ही ख़ूबसूरत ढंग से दर्शाया गया है। " फ़िर न जाने कहाँ खो गई।" - कविता की ख़ूबसूरती में हज़ार चाँद लगाती है। पर ख़ूबसूरती कभी नहीं खोती जब तक की वो दिल में न उतर जाए। चाहे निगाह से दूर हो गई हो लेकिन दिल से ना होगी कविवर के। " A thing of beauty is joy forever." Loved reading with its true essence.