मेरी प्रियतमा जीवन संगिनी Poem by Ambrish Kumar

मेरी प्रियतमा जीवन संगिनी

Rating: 5.0

तुम्हारे साथ धीरे धीरे चलने लगा हूँ मै
तुम मानो या न मानो अब बदलने लगा हूँ मै

मै तुम्हारी, माँ से बराबरी नहीं कर रहा
लेकिन तुमको भी माँ की तरह समझने लगा हूँ मै

कभी सोचता था की कैसे मै सम्भालूंगा तुम्हे
पर अब तुम्हारे साथ ही सम्भलने लगा हूँ मै

कभी सोचता था कैसे कटेगा जीवन का लम्बा सफर
लेकिन तुम्हारे साथ जीवन में रमने लगा हूँ मै

मेरी प्रियतमा जीवन संगिनी
Tuesday, December 11, 2018
Topic(s) of this poem: emotional,marriage,wife
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
यह कविता हमने अपनी शादी की दसवीं सालगिरह के अवसर पर अपनी जीवन संगिनी को समर्पित करते हुए लिखी है, आशा है आपको अवश्य पसंद आएगी
COMMENTS OF THE POEM
Ambrish Kumar 11 December 2018

मेरी धर्म पत्नी को शादी की दसवीं वर्षगांठ पर समर्पित मेरी कविता, आप भी पढ़िए

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