क्यों भागम भाग मची है चारों ओर,
दिखाई दे रहा है धुँआ धुँआ सा चहुँ ओर
बैठ कर इस किनारे को निहारता जा रहा हूँ,
अपना था जो आशियाना, वो बिगाड़ता जा रहा हूँ
तूफ़ान कैसा भी आए, किश्ती को अपनी आप ही खेना पड़ता है,
चंद लम्हों की तस्वीरों में भी खुद को कैद करना पड़ता है
कभी कभी इस आसमान की जेबें भी टटोलनी पड़ती हैं
बीते वक़्त की बारिशे तभी आज़ाद हुआ करती हैं
वक़्त के शिकंजे में फँसे पंछी दम तोड़ने को हैं,
शिकवे और शिकायतें सिर्फ़ लब तक आकर रुके हैं
‘मैं' की हिमाकत से, मैं ही खौफ़जदा हो जाता हूँ
अमन को फिजाओं में घोलकर, हक अपना आजमाता हूँ
हर आदत को अपनी बदलना चाहता हूँ
नुमाइशों के जश्न से छुटकारा पाना चाहता हूँ
मैं आज़ाद था, मैं आज़ाद हूँ
आज़ाद ही रहना चाहता हूँ
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