जरा मुश्किल था...... Poem by RACHNA PAL

जरा मुश्किल था......

मैंने खुद को गुमशुदा करके देखा, उन गुमराह गलियों में...........................
बाद में खुद को ढूँढना मुश्किल था।
मैंने उड़ कर देखा, उन चिड़ियों की तरह......................................................
बाद में अपना घरौंदा ढूँढना ही मुश्किल था।
मैंने डूब कर देखा, उस समुन्द्र की गहराई में.................................................
बाद में किनारा कहाँ गया ये पहचानना मुश्किल था।
मैंने बदल कर देखा, खुद को इस दुनिया की तरह...........................................
बाद में अपना अस्तित्व ढूँढना ही मुश्किल था।
मैंने छूने की कोशिश की, उनचमकतें तारों को भी.................................................
पर उनकी चकाचौंध से लड़ पाना जरा मुश्किल था।

जरा मुश्किल था......
Friday, January 10, 2020
Topic(s) of this poem: alone,lonely
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RACHNA PAL

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moradabad UP India
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