क्यों लड़ता झगड़ता है तू Poem by Sukhbir Singh Alagh

क्यों लड़ता झगड़ता है तू

क्यों लड़ता झगड़ता है तू,
क्यों एक दूसरे से बैर रखता है तू! !
क्यों इंसान होकर इंसान से ही,
इतनी दुश्मनी पालता है! !
कभी लड़ाई, धर्म के नाम पर,
तो कभी ज़मीन के टुकड़े माँगता है! !
"सुखबीर" आगे तो सिफारिशें भी नहीं चलेगी
जो बोएगा सो पाएगा।

Thursday, August 17, 2017
Topic(s) of this poem: fight
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