ख़ामोशी ने फिर सवारा हमे
तन्हाई ने गले लगाया है
खुद से है खफा या किस्मत से रुसवा
प्यार के रिश्तोंने हर कदम पर आज़माया है
अपना ही साया दूर हुआ हमसे
रौशनी की तपिशसे आज दिल घबराया है
अनजानी उन राहों में कहीं छूटा था साथ
ना हो जो किस्मत में, वो कहाँ किसी को मिल पाया है
क्या करूँ अफसोश जो हो ना सका
लबों पर फिर भी ये दुआ आया है
नाम उनकी खुशियां हमारी हो
कमवक़्त दिल उन्हें आज भी कहाँ भुला पाया है
सपनो ने हमसे यु नाता तोडा है
बीते लम्हों के धुंदली यादों ने हमे पुकारा है
जाने पहचाने राहों में हम हुए गुमसुदा
किसी के ख्यालों ने आज फिर से हमे रुलायाहै
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem