Tuesday, June 13, 2017

जिंदगी निखरती ही नहीं थी Comments

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वो अपने सपनों के बचे चारकोल से
हर रोज उसे घिसती थी
चमकाने के लिए
पुराने भांडों की तरह रगड़ती थी
...
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Kezia Kezia
COMMENTS
Johan Da 14 January 2018

वाह।।।।। मज़ा आ गया पढ़ कर। कितने बेहतरीन शब्दों को पिरोया है इस प्रस्तुति में। शुक्रिया ,😊😃

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Rajnish Manga 13 June 2017

वो अपने सपनों के बचे चारकोल से हर एक दाग छुड़ाना चाहती थी.... //.... अद्वितीय रचना व खुबसूरत अभिव्यक्ति. हर कोई चाहता है कि जीवन पाक साफ़ हो और ऐसा नज़र भी आये. बहुत खूब.

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M Asim Nehal 13 June 2017

क्या बात है, मज़ा आ गया इसे पढ़ के, शब्दों का सही चयन किया है आपने, ज़िन्दगी का विश्लेषण करने के लिए

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