उत्तुंग विराट है महिमा जिसकी, पतितपावनी गंगा महान।
वर्णन करने को वैभव उसका, है प्रयत्नशील यह अल्पज्ञान।।
भगीरथ के तप का यशफल, शंकर की जटा का ले अवलम्बन।
स्वर्ग से उतरी धर्मधरा पर, भरने प्राणी जीवन में स्पंदन।।
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