जहाँ भी देखो सेहरा दिखाई देता है Poem by Talab ...

जहाँ भी देखो सेहरा दिखाई देता है

जहाँ भी देखो सेहरा दिखाई देता है
मुझको तू आज भी मेरा दिखाई देता है

ये मेरी बदगुमानी तू चाहता था मुझे
वैसे तू आज भी खुश रंग दिखाई देता है

हज़ारों मील साथ चले इन राहों पर कभी
अब आगे ये सफ़र लंबा दिखाई देता है

चाँद पर खड़े हुए धरती को जब भी देखूं
सिर्फ मेरा हिंदुस्तान दिखाई देता है

जन्नत किसे कहते हैं क्या है ये दोज़क
बा खुदा मुझको तू ही तू दिखाई देता है

कहने को कहूँ ज़िन्दगी मेरी है मगर
इख़्तियार इस पर कुछ तेरा दिखाई देता है

ऍ खुदा उस ऊँचे मंज़र पर ले चल मुझे
जहाँ से सभी कुछ अच्छा दिखाई देता है

किन यादों से आँखें भर आई यकायक
अब मुझे सब धुन्दला सा दिखाई देता है

क़फ़स की इन सलाखों से झांकता हूँ जब
ये जहाँ कितना सुनेहरा दुखै देता है

जिसकी दीवानगी पर कभी तुम करते थे नाज़
आज वही तलब सौदाई दिखाई देता है

बदगुमानी = mistrust
दोज़क= Hell
क़फ़स= Cage
सौदाई= Mad

Thursday, April 6, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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