मुददत से है वो हमसे दूर अब क्या कीजे
नहीं जाती सदा इतनी दूर अब क्या कीजे
थे मेरे माज़ी के ख्वाब कितने सुनहरे
एक एक कर ऐसे हुए सब चूर अब क्या कीजे
और काबू में रखनी होगी तुझे ये तलब
सराब है सेहरा में ज़ुहूर अब क्या कीजे
हां जुर्म कर पी चले उन आँखों से जाम
हाँ है कुछ हल्का सा सुरूर अब क्या कीजे
तज्जली ए जमाल ऐ यार कैसे बयान करें
हर सिम्त है सियाही बेनूर अब क्या कीजे
अब बनाये नहीं बनती बात वो बिगड़ी सी
तेरी तरह मै भी हूँ मजबूर अब क्या कीजे
वादे से मुकर जाते तो कैसे जीते तलब
जान जानी है जाएगी ज़ुरूर अब क्या कीजे
माज़ी = Past
सराब= mirage, illusion
ज़ुहूर = visible
सुरूर= intoxication
तज्जली= Splendour, brilliance
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