देखा है उनको कुछ ऐसे इन्ही आँखों से Poem by Talab ...

देखा है उनको कुछ ऐसे इन्ही आँखों से

देखा है उनको कुछ ऐसे इन्ही आँखों से
चाहा है उनको कुछ ऐसे इन्ही आँखों से

बारहा बदल जाते हो कोई ज़िनदगी की तरह
फिर तुम्हे पहचाने कैसे इन्ही आँखों से

देखो जो हमारे बीच आया ये ज़माना कभी
जला देंगे उसे कसम से इन्ही आँखों से

क़ैद कर रखे थे अश्क हम ने सदियों से कईं
राहत ए ख़ुशी बहे ऐसे इन्ही आँखों से

अब इनमे वो बात कहाँ के दूर तक देखिये
तै होंगे फासले ये कैसे इन्ही आँखों से

बदल गया आज मेरा खुदा ना देखे है मुझे
इबादत तेरी की है वैसे इन्ही आँखों से

रंग चूका है सभी कुछ तेरी लाली में तलब
बहा जो लहू आज ऐसे इन्ही आँखों से

Thursday, April 6, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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