उम्र भर बेख़ौफ़ किसको प्यार करते रहे Poem by Talab ...

उम्र भर बेख़ौफ़ किसको प्यार करते रहे

उम्र भर बेख़ौफ़ किसको प्यार करते रहे
उम्र भर हम बेवक़्त इंतज़ार करते रहे

फिर मेरी मासूमियत रास न आई उनको
ता उम्र जिस संग दिल पर ऐतबार करते रहे

दोस्तों ने था समझाया कहाँ सुने हम
दौर ए जूनून खुद को शर्मसार करते रहे

एक उम्र की कोशिश से सम्भली थी तबियत
एक उम्र से फिर खुद को बीमार करते रहे

तेरे आगे कितनो के काम आते रहे थे हम
तेरे पीछे खुदी को बेकार करते रहे

खिले तो थे गुल ना जाने चमन था किसका
और हम थे के जश्न ए बहारां करते रहे

दाना है तलब जो इक बार में समझजाए
और एक तुम जो खता बार बार करते रहे

शर्मसार = shamed
दाना = Wise

Thursday, April 6, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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