सच क्या झूट है तुम जान लो तो काफी है Poem by Talab ...

सच क्या झूट है तुम जान लो तो काफी है

सच क्या झूट है तुम जान लो तो काफी है
एक बार बात मेरी मान लो तो काफी है

क्या नहीं मुंकिम इस दुनिया में मगर
खुद अपने दिल में ठान लो तो काफी है

अपना हिस्सा मांगता हूं ए खुदा तुझसे
मुझे ज़मीन तुम आसमान लो तो काफी है

ये मैंने कब कहा के साथ रहो तुम मेरे
बस सामने अपना मकान लो तो काफी है

चाँद को मुठी में ना समेट पाए तो क्या
अर्श से ऊपर इक उड़ान लो तो काफी है

वजह ए दोस्ती कुछ रहम तो कर ए साक़ी
बदले जाम क्या ईमान लो तो काफी है

करते हो क्या क़ज़ा का इंतज़ार तलब
सामान तुम अपना बाँध लो तो काफी ह

Thursday, April 6, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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