यूँ तो हर शक्स की यही कहानी है
लम्बा सफ़र छोटी सी जिंदगानी है
पालकों पर जो ठेहरा वो मोती है
गालों पर से जब उतरा कि पानी है
फिर भुला देंगे कभी याद आया तो
अबके बरस यही हमने भी ठानी है
कईं सालों बाद मिले तो हमसे कहा
सूरत कुछ तेरी जानी पहचानी है
ये अश्क मेरे खफीफ ही सही मगर
वो उनकी हसी कितनी सर गिरानी है
इन्तहा ए दर्द पूछते हो मुझसे
कुछ रातें अब और भी बितानी है
काफिर वो तेरा कभी रहा था ‘तलब'
तेरी बस ये इतनी सी नादानी है
खफीफ = Light, inconsequential
सर गिरानी = heavy, significant
काफिर = Non believer
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