इक धुंद सी फैली हुई है राहों में
मनज़िल फिर भी हमारी है निगाहों में
बेदाश्त हवा उडा आई खत उनका
हम समझे असर नहीं रहा आहों में
लगती हैं मजाज़ी ये बातें ऐ शेख
बू ए तास्सुब आये है सलाहों में
किसकी मजाल हमे छू भी लेता कोई
सर हमारा जब उनकी है पनाहों में
उड़ चली होगी उस चेहरे की रंगत
जो धूप से बचता रहा सलाखों में
दाग जानकार पोंछते रहे हम जिसको
आखिर को तिल ही निकला है गालों में
अब होगा क्यूँकर इलाज ए दिल तलब
आज वो असर कहाँ इन दवाओं में
बेदाश्त = careless
माजाज़ी = unreal
तास्सुब = fanaticism
सलाह = advice
क्यूंकर = how
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