आया हमारे आगे पारसा भी संभल संभल के Poem by Talab ...

आया हमारे आगे पारसा भी संभल संभल के

आया हमारे आगे पारसा भी संभल संभल के
इतराया हमारे पीछे रिन्द भी संभल संभल के

गिरते रहे यहां चले जितना भी संभल संभल के
मत चलिये साथ मेरे इतना भी संभल संभल के

हो इक नाज़ुक सी कली गुलछिन से कैसे बचोगी
खिलना है बाज़ीचे में तुमको भी संभल संभल के

बे खौफ नज़रें ना बन जाएं बाइस ए गुस्ताखी
करते हैं दीदार ए यार हम भी संभल संभल के

सिकंदर से सलादीन से मसीहा से पाया ये सबक
नहीं जीता है किसीने जहां चल कर संभल संभल के

वो तब था के रास्ती इतराए चलती थी राहों पर
गुज़रे है आज कूचों से वो भी संभल संभल के

शेखजी अब मान भी जाओ कुछ तो कर दिखाओ हमें
एक उम्र गुज़र चुकी है तुमको भी संभल संभल के

ज़माना है ज़ालिमों का ये दुनिया है ज़ालिमों की
चलना है यहां तलब तुमको भी संभल संभल के

पारसा = holy
इतराना = strutting
रिन्द = drunkard
गुलछिन = flower picker
बाइस = reason, cause
रास्ती = Integrity, honesty

Thursday, April 6, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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