बिछड़ कर तुझसे कभी मै खुद ही को ना मिला Poem by Talab ...

बिछड़ कर तुझसे कभी मै खुद ही को ना मिला

बिछड़ कर तुझसे कभी मै खुद ही को ना मिला
ये तस्सवुर कैसा जिसमे तुझी को ना मिला

अपने साये से यूँ घबरा जाता हूं
मानो जैसे हम साया ही को न मिला

देखें हैं बेशुमार ये शहर के लोग
मगर इन सब में इंसान मुझी को ना मिला

हया की हद से दोस्त गुज़र चूका है वो
जो शक़्स कभी बेनक़ाब मुझी को ना मिला

आया है तेरी ग़ज़ल पर निखार गोया
जैसे कभी कोई बावफ़ा को ना मिला

घटाएं यूँ के आसमान को ना देखा
किस्मत यूँ इक बूँद पानी को ना मिला

मायूस लौटा है मस्जिद से आज तू तलब
फिर वहाँ भी तू अपने खुदा को ना मिला

तस्सवुर = Thought
गोया = so to speak

Thursday, April 6, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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