क्यों तुम डराते हो मुझे Poem by Talab ...

क्यों तुम डराते हो मुझे

क्यों तुम डराते हो मुझे
क्यों तुम सताते हो मुझे

यूँ रकीबों से हँस खेलकर
क्यों रोज़ जलाते हो मुझे

जो बात भूल चुके थे हम
क्यों याद दिलाते हो मुझे

बट चूका हूँ टुकड़ों में जब
क्यों अपना बनाते हो मुझे

चली सांस ज़िंदा हूँ अब
क्यों यार दफनाते हो मुझे

रह गया हूँ क्या एक ही साज़
क्यों हर बार बजाते हो मुझे

है जफाकार सितमगर भी तलब
क्यों फिर इतना चाहते हो मुझे

रकीब = Rival in love
जफाकार = oppressor
सितमगर = Tyrant

Thursday, April 6, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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