सोचने बैठी तो पाया कि
बात तो बस इतनी सी थी
...
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कुछ अनछुये प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त होने वाली संबंध-कथा जो एक स्याह तस्वीर तथा उलझन से बाहर आने की जद्दो जहद कर रही है. गहरी अनुभूतियाँ दिल को छू जाती हैं. धन्यवाद. साँझ के आँगन में / कुछ सपनों की राख बाकी थी टूटे पंख लिये एक चिड़िया / उड़ने को बेकरार बैठी थी
बात तो कुछ भी नही थी लेकिन जुबान से सुनानी बाकी थी....aisa bhi hota hai kya Bahut behtareen rachna. Dhanyawad.
kavita pasand karne ke liye bahut bahut dhanyawad Varshaji.