दोस्त अब थकने लगे हे
साथ साथ जो खेले थे बचपन में
वो सब दोस्त अब थकने लगे है
किसी का पेट निकल आया है
...
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दोस्ती थकती नहीं है थकन दूर करती है फ़ोन पे भी तेरी आवाज़ मेरी थकन हरती है बीमे के फ़ॉर्म से जो छोटे बड़े काम से जो दोस्ती बिखर जाए तो समझो वो थी ही नहीं दोस्त तो थक सकते हैं - दोस्ती नहीं थकती Swaranjeet Singh 25th June 2021
फ़ुरसत की कमी कैसी आँख में नमी कैसी दोस्ती ख़तों में नहीं यादों में होती है प्यार ख़त कहाँ माँगे चलती ही ना हों टाँगें ये तो बस बहाना है वो पड़ा है फ़ोन उठा दूर कहाँ जाना है
बालों के पकने से पैरों के थकने से बोझ-ए-ज़िम्मेदारी से छोटी बड़ी बीमारी से जिस्म तो थक सकते हैं - दोस्ती नहीं थकती सेहत की क़िल्लत से पैसे की ज़िल्लत से पेट के निकलने से दिन भर के चलने से जिस्म तो थक सकते हैं - दोस्ती नहीं थकती
As your humble request to share this poem to college alumni.. Yes- you can.
Dear Mr Sanjay your poem is beautiful and make me nostalgic i want to record this poem for our college alumni meet with your kind permission. my mail id is raghav.dusane@gmail.com thanks
किशोरावस्था और युवावस्था की हँसती खेलती मैत्री का उम्र बढ़ने के साथ जो हाल हो जाता है, उसका आपने सुंदर वर्णन किया है. धन्यवाद, मित्र.
Excellent