जब रातो का अँधियारापन दिन में घुलने लग जाता है।
जब जीवन का पल पल भारी हो शूलों सा चुभने लग जाता है
जब दुनिया का ये खेल तमासा बेमानी हो जाता है
तब दुनिया भर के लिए हम थोड़े अभिमानी हो जाते है।
सच कहते हैं फिर भी थोड़े से बेमानी हो जाते हैं।
जब चिंताओं की रेखाएं माथे पर दिखने लगती हैं
जब दुविधाओं के बादल में सब आशाएं छुपने लगती हैं
जब खुदके सपने भी हमको कुछ बोझ दिखाई देते हैं
खुदके निर्मित रस्ते भी जब गलत दिखाई देते हैं
जब दुनियाभर की नजरो में एक बच्चा मरने लगता है
जब दुनियाभर के बोझों से खुदका ही कन्धा जलने लगता है।
खेल खिलोनो की दुनिया जब विस्तृत लगने लगती है
अब आगे जाने क्या होगा हर धड़कन डरने लगती है
लेटे लेटे घरवालो की जब यादें दौड़ी आती है
उनके प्रति कर्तव्यों की चिंताए अकुलाती हैं
तब मन अपना भी घर की दहलिजो के अंदर रहना चाहता है
तब मन अपना भी घर की देहलिजो के अंदर रहना चाहता है
माँ की गोदी में एक नन्हा सा बालक सोना चाहता है
एक छोटा लड़का पापा के सीने लगना चाहता है
जब रातो का अंधियारपन दिन में घुलने लग जाता है
जीवन का पल पल भरी हो शूलों सा चुभने लग जाता है।
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A tremendous work of yours.....loved it :)