क्या है फिर ऊँचा पर्वत? क्या है गहरा समंदर?
जब हर मंजिल पाने का, जोश हो दिल के अंदर।
मिला है तुझको जीवन, कुछ कर दिखाने के लिए
तु झौंकदे अपना सब, मंजिल पाने के लिए
जिसे तु छु ना पाए नहीं कोई ऐसा मंजर
जब हर मंजिल पाने का, जोश हो दिल के अंदर।
नहीँ कुछ पास मेँ तेरे ना कर तु इसको याद
बहुत कुछ मिल जाएगा, मंजिल पाने के बाद
तेरी ही धरती होगी, तेरा ही होगा अंबर
जब हर मंजिल पाने का, जोश हो दिल के अंदर।
जहाँ तेरे कदमोँ के, नीचे आ जाऐगा
जो तु हर मंजिल पर, युहीँ चढता जाऐगा
आज के नवयुग का फिर, बनेगा तु सिकंदर
जब हर मंजिल पाने का, जोश हो दिल के अंदर।
क्या है फिर ऊँचा पर्वत? क्या है गहरा समंदर?
जब हर मंजिल पाने का, जोश हो दिल के अंदर।
जब हर मंजिल पाने का, जोश हो दिल के अंदर।।
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