यकीन रख Poem by Rahul Awasthi

यकीन रख

अभी तो कई मौसमों कई हवाओ के बाद आएगा
मग़र कोई तो रुत भी आएगी
जब, इस सूखे शजर में खुमार आएगाll

यूँ ही ज़र्रा ज़र्रा लूटता रहा जो खुदको ओरो के लिए
यकीन रख, तेरे इन मुतमईन हाथो में भी एकदिन गुलाब आएगाll

पाँव छलनी हैं तेरे मग़र तू क्यों डरता है
मरने से पहले ही सही मग़र हौसलों में उबाल आएगाll

जिंदगी भर जिसने जिंदगी से जंग की है
यकीन रख, तेरी फ़टी पोशाक के टुकड़े से एक दिन रेशम का थान आएगाll

Tuesday, October 4, 2016
Topic(s) of this poem: motivational
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
☺☺
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 27 November 2016

Laajawaab......tremendous poem....lovely creation.....loved it :)

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