Tuesday, August 23, 2016

बचपन की यादें Comments

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महानगरों की इस भागती-दौड़ती जिंदगी में,
कहीं खो गया है चैनो-सुकून |
न परिवार के लिये समय है, न खुद के लिये,
दिलों को रौशन नहीं करते यहाँ मंदिर के दिये |
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Rakesh Sinha
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