इसका एहसास मुझे हैं किसी और को नही
मेरे दर्द का एहसास मुझे हैं किसी और को नहीं
मेरी खामोशी का एहसास मुझे हैं किसी और को नहीं
वो जो चल रहा है तूफान मेरे अन्दर उसका एहसास मुझे हैं किसी और को नहीं
मैं वक़्त के हाथों मारा जा रहा हूँ इसका एहसास मुझे हैं किसी और को नहीं
मैं हार की सीमा पर खड़ा हूँ इसका एहसास मुझे हैं किसी और को नहीं
मैं रोज़ तिल - तिल करके मर रहा हूँ इसका एहसास मुझे हैं किसी और को नहीं
मेरे सपने रोज़ बिखर रहे हैं इसका एहसास मुझे हैं किसी और को नहीं
एक छोटा सा ज़ज्बात मेरी नन्ही कलम से
(शरद भाटिया)
Ehsaas khil oothta hai Jab hawa ke jhoonkoon ke sath Paigam pahucha de jata hai Ehsaas akele kuch nahi Par saath milke banjaye yaadgar lamhe. Bahut khoobsurat rachana. Communication always makes life better.
कोई तो होगा जो ये सब जानता होगा, बताया न हो बेशक मगर पहचानता होगा. पढ़कर अच्छा लगा आपका एहसास, सच मुच कई बार ऐसा लगता है की हमारे अलावा कुछ बातें है जो कोई नहीं जानता 10++++
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'मैं हार की सीमा खड़ा हूँ इसका एहसास मुझे हैं किसी और को नहीं'. कहते हैं कि ज़िन्दगी एक संघर्ष भी है और अस्तित्व एवं अस्मिता की जंग भी है. यदि इसे एक चक्रव्यूह मान लिया जाये तो उसमें योद्धा को अकेले ही जाना पड़ता है और उसे निरस्त करना पड़ा है. हाँ, दूसरे लोग इसमें अपना नैतिक समर्थन आपको दे सकते हैं. बहुत अच्छी रचना.