आज का नेता Poem by Sharad Bhatia

आज का नेता

Rating: 4.8

आज का नेता

यह कहलाते"नेता" हैं
और आम आदमी का फाड़ते कुर्ता हैं

पागल यह हम सबको बनाते
और आश्वासनकी भीखदे जाते

एक कुर्सी का लालच इनसे क्या - क्या नहीं करवाता
बेटा बाप आपस मे लड़ जाता

सत्ता के भूखे यह लोग अपने संस्कार भूल जाते
रह - रह एक दूसरे पर कीचड़ उछालते

आम आदमी को अपने जाल में ऐसे फंसाते
जैसे मकड़ी के जाल में मक्खी

यह हर बात का मुद्दा बनाते
और मीडिया के साथ मिलकरभोली भाली जनताको उलझाते
बे-सिर पैर की बातें कर जाते
कभी सुशांत, कभी प्रशांत, कभी कंगना, कभी अंगना कोमुद्दा बताते
और हम भी बेवकूफ़इनकी बातों मे आ जाते

मत पूछो इनसेकोई सवाल
नहीं तो यह मचा देगे बवाल

चुनाव के समय यह भी बरसाती मेढ़क की तरह बाहर आ जातेऔर अपनीबेसुरी आवाज से हम सबको डराते

आश्वासनों की झड़ीलगाते
और हम सबको रिझाते.

चुनाव खत्म होते ही ऐसे रुख अपनाते
अपने और गैरों का मतलब समझाते

फिर यह ऐसे गायब होते
जैसे गधे के सिर पर से सींग

जनता के पैसों पर ऐशकर जाते
बड़े - बड़े पोस्टर अपने नाम के छ्पवाते

जीतने पर जुलूस निकालते
और अपने को बाहुबालीकहते.

फिर यह अपनी सत्ता मे इतने मगरूर हो जाते
कि आम जनता को भूल जाते

भूल जातेयह हमारे देश के असली नेता जी

नेता जी सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी जी को


बस इनको आता जनता को दबाना औरबस दबाना

Friday, September 11, 2020
Topic(s) of this poem: feeling
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This verse is inspired by My beloved Guruji Rajnish Manga ji poem's "बिहार मे पोस्टर लगे हैं"
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 12 September 2020

Wah wah Neta ki pol khol di aapne सत्ता के भूखे यह लोग अपने संस्कार भूल जाते रह - रह एक दूसरे पर कीचड़ उछालते..........Bahut satik aur sahi kaha aapne.100+++++

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Rajnish Manga 11 September 2020

नेतागिरी की पोल खोलती जोरदार कविता. आपके हर शब्द से इनकी असलियत का पर्दाफाश होता है. ये जनता के सेवक होने का नाटक करते हैं लेकिन उसी जनता के दुःख दर्द को देखना नहीं चाहते. धन्यवाद. जनता के पैसों पर ऐशकर जाते फिर यह अपनी सत्ता मे इतने मगरूर हो जाते कि आम जनता को भूल जाते

0 0 Reply
Varsha M 11 September 2020

Bahut sahi rachna. Har baat sach baya karte. Ye neta hamare bas naam ke dost hai to dushman se bhi badhkar. Bahut khoob.

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