अब वो भी छुपाने लगे
अब वो भी छुपाने लगे,
हम जो दो बात कभी इकट्ठे करते थे,
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मानव स्वभाव में उतार चढ़ाव का सुंदर अंकन. रचना के अंत में शे'र भी अच्छा कहा है. धन्यवाद, मित्र शरद जी.
Bahut khoob bahut khoob Aab oo bhi chupne lage Baadloon ke aad me Hame lage ke wo poonchenge Kya baat hai iss khamooshi ka Par wo to bas nazarandaaz kar gaye. Kya kahoon aai musafir Soocha tha maine to bahut Par ussne to dekha bhi nahi palat kar Ke haal-e-takdeer ne kiya mera kya haal. Bahut khoob rachna aur sone pe suhaga shayari aandaz. Dhanyawad.
दाद देते हैं हम तुम्हारे " नजर अंदाज " करने के हुनर को जिसने भी सिखाया वो " उस्ताद" कमाल का होगा Aur उस्तादों से भी उस्तादी कमाल कर गयी.... A simple addition to your sher.
एक बेहतरी कविता जो हकीकत के बेहद करीब है. अर्ज़ किय है: : 10++ वक़्त के साथ सब बदल जाता है खुशियों का लम्हा भी गुज़र जाता है जो चढ़ता है सूरज आस्मां में वो भी तो ढलते ढलते ढल जाता है
bahut badhiyaa kavitaa kaa rup, , mujhe achchhi lagi, , clear 10 वो चेहरा रविवार, ३० अगस्त २०२० धरती एक मानव समंदर है दुरिया ओर मन-मनांतर है इसी में किसी से दिली लगाव हो जाना बड़ी बात है इसी को अंत तक निभाना सौभाग्य और सौगाद है। डॉ जाडिआ हसमुख