☺वामपंथियों की मज़बूरी Poem by Upenddra Singgh

☺वामपंथियों की मज़बूरी

😊
JNU में जो आस्तीन के सांप
सिर उठा रहे हैं
हमारे वामपंथी भाई
उन्हें दूध पिला रहे हैं।
इतना ही नहीं
प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर से
उनके सुर से सुर भी मिला रहे हैं।
और उन्हें पूरी तरह दूध का धुला बता रहे हैं।
समझदार लोग समझते हैं
कि -
ऐसा करना/कहना
उनकी स्वाभाविक मज़बूरी है
आखिर,
जो अब तक मानसिक रूप से
चीन के गुलाम हैं
चीन के इशारे पर चलना
तो उनके लिए निहायत जरूरी है।
वैसे भी
ऐसा करना तो
उनकी पुरानी परम्परा है।
और उनके जैसे प्रगतिशील के
लिए वतनपरस्ती में क्या धरा है?
यदि उन्होंने ऐसा कर ही दिया
तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है?
उनसे भला और क्या उम्मीद हो सकती है
जो निहायत ही चिकना घड़ा है।

उपेन्द्र सिंह 'सुमन'

Wednesday, March 9, 2016
Topic(s) of this poem: political
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