आइल बाज़ारवाद भईया Poem by Upenddra Singgh

आइल बाज़ारवाद भईया

आइल बाज़ारवाद भईया,
देखा अइंठत बा कइसे रूपईया.

करय मनमानी अउर अपनय चलावय,
बूढ़वा जवनकन के सबके नचावे,
दुनियां करय ता-ता थईया,
आइल बाज़ारवाद भईया..............................

बड़े-बड़े साधू मह्न्थन देखलीं,
मुल्ला इमाम अउर संतन के देखलीं,
करयलं उ कइसे कमईया,
आइल बाज़ारवाद भईया..............................

होला सरेआम कोखिया क सउदा,
बड़े-बड़े तीसमार बनिग गइलें मऊगा,
घूमेलं इज्जत क खरीदवईया,
आइल बाज़ारवाद भईया..............................

देशवा क हमरे ज़वानी बिकात बा,
आसफ़ आज़ाद क कुर्बानी बिकात बा.
होति हउवे हमरी हिन्ईया,
आइल बाज़ारवाद भईया..............................

हिरोइन उहे अब त बड़की कहावति बा,
कपड़ा उतारि जवन ठुमका लगावति बा,
दादी कहंय देखि दईया रे दईया,
आइल बाज़ारवाद भईया..............................

तोप आ ताबूत में अब होत बा दलाली,
राजनीति कुलटा बजावति बा ताली,
नेता जी काटें मलईया,
आइल बाज़ारवाद भईया..............................
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Sunday, December 6, 2015
Topic(s) of this poem: blindness
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