कविता बहुत सारगर्भित है. मैं इस बात से सहमत हूँ कि भौतिक विकास के दौड़ में हम अपनी जड़ों से दूर होते चले जा रहे हैं. इससे संभव है हम आर्थिक शक्ति के रूप में अपना स्टेटस बढ़ा लें, लेकिन इसके साथ जो दिखावा, असंतोष, सहनशीलता की कमी और परस्पर सम्मान का ह्रास उपजेगा वह हमें ले डूबेगा. धन्यवाद.
ये आम तले चौपाल
अच्छा बुरा हर फैसला यहीं से होता था
....जड़ भूलोगे तो पेड़ कितना फलेगा
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कविता बहुत सारगर्भित है. मैं इस बात से सहमत हूँ कि भौतिक विकास के दौड़ में हम अपनी जड़ों से दूर होते चले जा रहे हैं. इससे संभव है हम आर्थिक शक्ति के रूप में अपना स्टेटस बढ़ा लें, लेकिन इसके साथ जो दिखावा, असंतोष, सहनशीलता की कमी और परस्पर सम्मान का ह्रास उपजेगा वह हमें ले डूबेगा. धन्यवाद. ये आम तले चौपाल अच्छा बुरा हर फैसला यहीं से होता था ....जड़ भूलोगे तो पेड़ कितना फलेगा