Saturday, October 24, 2015

तुम्हारे बिन मुझे ओ माँ ये घर अच्छा नहीं लगता Comments

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ज़माने भर की रौनक है, मगर अच्छा नहीं लगता
कोई दरगाह या कोई दर, मुझे अच्छा नहीं लगता
न भाता अब ये आँगन ही, न भातीं अब ये दीवारें
तुम्हारे बिन मुझे ओ माँ ये घर अच्छा नहीं लगता
...
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Abhishek Omprakash Mishra
COMMENTS
Rajnish Manga 24 October 2015

बहुत सुंदर, बहुत मधुर. माँ की ममता अतुलनीय है. इसी ममता को समर्पित आपकी कविता कथ्य तथा अभिव्यक्ति में बहुत ऊँची है. धन्यवाद, मित्र.

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