कोयला हूँ, जल कर भी काम आऊँगा
समंदर-ए-इश्क़ की गहराइयों मे मोती ढूंदूंगा; क़यामत से क़यामत तक सितमगर के दिल मे दाग ढूंदूंगा
इधर-उधर इधर-उधर कदम जहाँ जाएँ बस उधर; न है कोई मंज़िल और ना हैं कोई रास्ते; बस अपने मन की है ज़िंदगी उसकी
हमको नींद क्यूँ सताती है; क्या तुम्हारी याद फिर आती है।
ज़िंदा हूँ, फिर उठूँगा।