क्या पता मिलें कब किस मोड़ पे
व्यस्त हों सभी जाने किस होड़ में
ले आया हूँ पंक्तियाँ तेरे लिये मैं
झुलाता हूँ तुझे मन ही के झोड़ पे
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कश दर कश आये तो झोंका है
हल्के हल्के बहे तो मंद समीर है
तेज बह चली तो कहें आँधी है
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दो हाथ भर था मैं उनके दो हाथ में
सीने से लगाये रक्खा उन्होंने प्रातः में
मात पिता को जन्म दे थक गया था
सो पिता के सीने से चिपका ठाठ में
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अर्ध रोटी सा उगा चंद्रमा
चाँदी सी दमकती महिमा
बादलों में से झांकता था
करता हठात् अठखेलियाँ
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एक बार मेरे आईने ने मुझसे ही कहा था
ख़ुद से मिल अब तक तू अकेला रहा था
कहा तो पर ठौर उसका सीधा कहाँ था
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मेरे जीवन की शाम यादगार मधुर हो
कहे देता हूँ हर एक से सुन रहा है जो
कोई ना रोना बिलखना संताप करना
बस चिता की राख पर एक पेड़ देना बो
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